कैसा ये इश्क़ हैं...
Part 2
मेहमानों के जाने के बाद रईसा बेग़म की तेज़ आवाज़ पूरी हवेली मै गूंजने लगी..
मैं अपने कमरे से बाहर नहीं आयी..
मैं जानती थी, नदीम को छोड़ कर मुझे हज़ार बाते सुनाने लगेंगी..
बदअखलाक इंसान से दूर रहना ही अकलमंदीं हैं.
नदीम अपनी माँ का फरमाबरदार और तहज़ीबदार बेटा था, रईसा बेग़म कितना भी सुना लेती लेकिन वो मुँह से आवाज़ नहीं निकलता था,,
लेकिन बर्दाश्त करने की भी हद होती हैं, कहा तक इंसान बर्दाश्त करे, अब नदीम थोड़ा थोड़ा जवाब देने लगा था, इस का इलज़ाम भी रईसा बेग़म ने मुझ पर ही रख दिया था,मेरी बदतमीज़ीया देख देख कर नदीम मेरी तरह हो गया हैं,
इस पर नदीम ने कहा, अम्मी आप तो नहीं हुई नज़म खाला की तरह वो आपकी बहन हैं, उनका आप पर ज़ियादा असर पड़ना चहिए.
रईसा बेग़म गुस्से से लाल हो गयी.
और बकहने लगी अपनी हद मैं रहो.
तुम सब को हो क्या गया हैं, सब एक तरफ से मरीज़ ऐ इश्क़ मैं मुबतिला हैं,
और वैसे भी लैला का कुछ तो असर पड़ेगा तुम लोगो पर, सब पागल हो गए हैं, रईसा बेग़म ये कहते हुए अपने कमरे मैं चली गयी,
दूसरी सुबह नदीम आसमा से मिलने ज़ाहिद के घर पहुंच गया, आसमा और ज़ाहिद घास पे बैठे मौसम की रंगीनियों को देख रहे थे,
नदीम ने पीछे से आसमा के कंधे पे हाथ रखा.
आसमा ने पीछे मुड़कर देखा,
नदीम फूलो का गुलदस्ता लिये खड़ा था,
आसमा नदीम को देख कर खड़ी हो गयी,
ज़ाहिद की निगाहेँ नज़म को ढूंढ रही थी,
नदीम ने ज़ाहिद से कहा भाई मैं अकेला आया हु.
खाला नहीं आयी हैं,
अभी जारी है......
Zaifi khan
30-Nov-2021 06:08 PM
Nice
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Swati chourasia
10-Oct-2021 08:40 PM
Very nice
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Seema Priyadarshini sahay
02-Oct-2021 11:21 PM
बहुत खूबसूरत
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